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प्र तु॑विद्यु॒म्नस्य॒ स्थवि॑रस्य॒ घृष्वे॑र्दि॒वो र॑रप्शे महि॒मा पृ॑थि॒व्याः। नास्य॒ शत्रु॒र्न प्र॑ति॒मान॑मस्ति॒ न प्र॑ति॒ष्ठिः पु॑रुमा॒यस्य॒ सह्योः॑ ॥१२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

pra tuvidyumnasya sthavirasya ghṛṣver divo rarapśe mahimā pṛthivyāḥ | nāsya śatrur na pratimānam asti na pratiṣṭhiḥ purumāyasya sahyoḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्र। तु॒वि॒ऽद्यु॒म्नस्य॑। स्थवि॑रस्य। घृष्वेः॑। दि॒वः। र॒र॒प्शे॒। म॒हि॒मा। पृ॒थि॒व्याः। न। अ॒स्य॒। शत्रुः॑। न। प्र॒ति॒ऽमान॑म्। अ॒स्ति॒। न। प्र॒ति॒ऽस्थिः। पु॒रु॒ऽमा॒यस्य॑। सह्योः॑ ॥१२॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:18» मन्त्र:12 | अष्टक:4» अध्याय:6» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:6» अनुवाक:2» मन्त्र:12


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर कौन अजातशत्रुवाला होता है, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जिस (तुविद्युम्नस्य) बहुत प्रशंसारूप धन से युक्त (स्थविरस्य) विद्या और अवस्था से वृद्ध (घृष्वेः) दुष्टों के घिसनेवाले (दिवः) सुन्दर (पुरुमायस्य) बहुत श्रेष्ठ कर्म्मों में बुद्धि जिसकी उस (सह्योः) सहनशील का (महिमा) महत्त्व (पृथिव्याः) भूमि से (प्र, ररप्शे) अलग फैलता है (अस्य) इसका (न) न (शत्रुः) वैरी (न) न (प्रतिमानम्) मान वा सादृश्य और (न) न (प्रतिष्ठिः) प्रतिष्ठित (अस्ति) है ॥१२॥
भावार्थभाषाः - जो विद्या में वृद्ध, अमित प्रशंसा और महिमावाले, सत्य की कामना करते हुए, बहुत बुद्धिमान् और शम, दम आदि गुणों से युक्त होवें, उनका कोई भी न शत्रु, न बराबर और न उनसे अधिक प्रतिष्ठित होता है ॥१२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः कोऽजातशत्रुर्भवतीत्याह ॥

अन्वय:

हे मनुष्या ! यस्य तुविद्युम्नस्य स्थविरस्य घृष्वेर्दिवः पुरुमायस्य सह्योर्महिमा पृथिव्याः प्र ररप्शेऽस्य न शत्रुर्न प्रतिमानं न प्रतिष्ठिश्चास्ति ॥१२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (प्र) (तुविद्युम्नस्य) बहुप्रशंसाधनस्य (स्थविरस्य) विद्यया वयसा च वृद्धस्य (घृष्वेः) घर्षकस्य (दिवः) कमनीयस्य (ररप्शे) अतिरिणक्ति (महिमा) (पृथिव्याः) भूमेः (न) (अस्य) (शत्रुः) (न) (प्रतिमानम्) परिमाणं सादृश्ये वा (अस्ति) (न) (प्रतिष्ठिः) प्रतिष्ठितः प्रतिष्ठावान् (पुरुमायस्य) बहुशुभकर्मप्रज्ञस्य (सह्योः) सहनशीलस्य ॥१२॥
भावार्थभाषाः - ये विद्यावृद्धा अमितप्रशंसामहिमानः सत्यं कामयमाना बहुप्रज्ञाः शमदमादिगुणान्विताः स्युस्तेषां कोऽपि शत्रुः सदृशः प्रतिष्ठितो वा न जायते ॥१२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्यावृद्ध, अत्यंत प्रशंसा व महिमायुक्त, सत्यकामी अत्यंत बुद्धिमान व शम दम इत्यादी गुणांनी युक्त असतात त्यांना कोणीही शत्रू नसतो किंवा त्यांची बरोबरी करणारा नसतो व त्यांच्यापेक्षा अधिक प्रतिष्ठावानही नसतो. ॥ १२ ॥